उच्च न्यायलय की रोक के विरुद्ध अविलंब माननीय उच्चतम न्यायालय में वाद प्रस्तुत करने के संबंध में

देहरादून ब्रेकिंग हाई वोल्टेज न्यूज़ डॉक्टर सेमवाल की रिपोर्ट***
श्री महामाहिम राज्यपाल उत्तराखण्ड।
द्वारा- जिलाधिकारी देहरादून
विषय- राज्य सेवा आयोग की उत्तराखंड सम्मिलित सेवा (प्रवर) के पदों पर उत्तराखंड मूल की महिला अभ्यर्थियों को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण पर माननीय उच्च न्यायलय की रोक के विरुद्ध अविलंब माननीय उच्चतम न्यायालय में वाद प्रस्तुत करने के संबंध में।

माननीय महोदय,
यह बहुत बड़ी विडंबना की बात है कि सरकार की कमजोर पैरवी के कारण न केवल राज्य सेवा आयोग की सम्मिलित सेवा (प्रवर) के पदों पर माननीय उच्चन्यायलय द्वारा रोक लगा दी गई बल्कि वर्ष 2006 के शासनादेश पर भी रोक लगा दी गई है। जहां एक ओर यह उस राज्य के लिए बहुत बड़ा आघात है जिस राज्य की लड़ाई एवम संघर्ष के केंद्र बिंदु में महिलाएं ही थी, वही दूसरी ओर 2006 के बाद एक बार की कांग्रेस सरकार एवम तीन बार की भाजपा सरकार के लिए भी बड़ी शर्म की बात है कि 2006 के शासनादेश को कानून नही बना सकी। जबकि कतिपय अवसरों पर देखा गया की सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध विधान सभा में विधेयक लाकर उच्च न्यायालय के फैसले को नकार दिया।
देश के किसी भी राज्य के संघर्ष में कोई शहादत नही हुई, सिर्फ उत्तराखंड राज्य के संघर्ष में 42 से भी अधिक लोगों ने अपनी शहादतें दी है,जिनमे दो महिलाएं थी, जिनके नाम स्वर्गीय बेलमती चौहान एवम स्वर्गीय हंसा धनई हैं, और जो 2 सितंबर 1994 को मसूरी में पुलिस की गोलियों का शिकार हो गई थी।
यही नहीं 1-2 अक्टूबर 1994 को रात्रि में उत्तराखंड की मातृशक्ति के साथ पुलिस प्रशासन द्वारा ऐसा जघन्य अपराध किया गया जिसकी सजा “सजा ए मौत ” से कम नही होनी चाहिए थी। परंतु हमारी किसी भी सरकार ने महिलाओं के प्रति किए गए ऐसे शर्मनाक एवम अमानवीय व्यवहार के लिए संबंधित न्यायालयों में समुचित पैरवी नही की, जिस कारण हत्या एवम बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के दोषी अब तक खुलेआम घूम रहे हैं।
इसीलिए तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय पंडित नारायणदत्त तिवारी जी ने सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े उत्तराखंड की महिलाओं के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण रखते हुए उत्तराखण्ड मूल की महिलाओं के लिए नौकरियों में 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण का शासनादेश जारी किया।
22 वर्ष के उत्तराखण्ड में सत्तासीन एवम सत्ता के नजदीक रहने वाले राजनेताओं और नौकरशाहों ने हर स्तर पर भ्रष्टाचार किया,अब यह जनता के सम्मुख उजागर हो चुका है। हमारे विधायक विधान सभा में एक जाति विशेष को आरक्षण देने की बात तो करते हैं,वहीं सांसद दिल्ली की संसद ने बंगालियों को आरक्षण की मांग भी करते हैं पर किसी ने भी उत्तराखण्ड मूल की महिलाओ को ( जिसमे सभी जातियों की महिलाएं शामिल है ) 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण पर न तो सदन में गंभीरता दिखाई और न ही माननीय उच्च न्यायालय में।
राज्य के बाहर की महिलाओं का उत्तराखंड मूल की महिलाओं के आरक्षण के प्रति न्यायालय में जाना भी न्यायसंगत नहीं था। आखिर बाकी 70 प्रतिशत पदों के विरूद्ध तो वे आवेदन कर ही सकती थी। परंतु सरकार और सरकार के महाधिवक्ता की लापरवाही अथवा कमजोर पैरवी के चलते उत्तराखंड मूल की महिलाओं के 30 प्रतिशत आरक्षण पर रोक लगना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।
अतः हम इस ज्ञापन के माध्यम से आपसे मांग करते हैं की माननीय उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध माननीय सर्वोच्च न्यायालय में अविलंब वाद प्रस्तुत करने एवम उत्तराखण्ड के पक्ष की मजबूत पैरवी करने हेतु योग्य एवं अनुभवी अधिवक्ताओं को नियुक्त करने की कृपा करें।
भवदीय-
प्रमिला रावत
निवर्तमान केंद्रीय अध्यक्ष (महिला प्रकोष्ठ)
उत्तराखण्ड क्रांति दल।