उत्तराखंड की दिवंगत विभूतियां सूबेदार मेजर पदम सिंह गुसाईं

सूबेदार मेजर पदम सिंह गुसाईं

. आजाद हिंद फौज में शहीद होने वाले गढ़वाली सैनिकों में अग्रणीय  पदम सिंह गुसाईं का जन्म सन 18  97 में पौड़ी गढ़वाल के सत पाली गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री बुथाड़  सिंह गुसाईं था ।  यह 20 अगस्त सन 1915 को लैंसडाउन में भर्ती हुए ,और अपनी योग्यता के कारण उन्नति करते करते ये रॉयल गढ़वाल राइफल्स में सूबेदार  मेजर के पद तक पहुंच गए ,दक्षिण पूर्व में युद्ध प्रारंभ होते ही रॉयल गढ़वाल राइफल्स मलाया भेजी गई ,लेकिन उसके बहुत से सैनिक मारे गए ,और बहुत से कैद हो गए,केवल 300 सैनिक ही वापिस सिंगापुर पहुंच सके ,सिंगापुर पहुंचते ही इनकी बटालियन तो तुरंत युद्ध में भेज दिया गया ,उसने मुंह और बकारी में तगड़े मोर्चे लिए ,कई अफसर व सैनिक मारे गए या कैद हुए , अभी दोनों गढ़वाली पलटन ओं को मिलाकर संगठित ही किया जा रहा था कि सिंगापुर पर 15 फरवरी 1942 को जापानियों का अधिकार हो गया और सारे के सारे युद्ध बंदी बना लिए गए । 
     उसके बाद जब आजाद हिंद फौज का गठन किया गया तब गढ़वाली सैनिकों ने सर्वप्रथम अपना नाम लिखवाया ,इनके बटालियन के कैप्टन प्रीति शरण रतूड़ी लेफ्टिनेंट कर्नल बनाए गए ,और इनको मेजर बनाया गया ,इनकी बटालियन बर्मा में बढ़ते बढ़ते आसाम तक पहुंच गई ,तथा उसे भारतीय भूमि के कुछ अंश पर अधिकार करने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ ,लेकिन कोहिमा के समीप अंग्रेजों वह ब्रिटिश भारतीयों की विशाल तथा सुसज्जित सेना के आक्रमणों के कारण उस भारी रेजिमेंट को ही पीछे हटने का आदेश दिया गया ,मार्च सन 1945 में इनकी जजमेंट ने पीछे हटना शुरू किया ,छऔर दुर्भाग्यवश फिर आजाद हिंद फौज बहुत जापानी फौज के कहीं पर भी पांव ना जम सके ,पीछे हटने में इन्होंने बहुत बुद्धिमानी और सतर्कता से काम लिया ,फिर भी जो कि मार्ग में राशन वह यातायात की कोई व्यवस्था नहीं थी आता है कई सैनिक बीमारी और भूख से मर गए ,साथ ही प्रायः प्रत्येक स्थान पर शत्रु पक्ष की गोलाबारी होती रही ,कई स्थानों पर जमकर लड़ाई अभी हुई ,जिस कारण इस बटालियन का तीन चौथाई भाग समाप्त हो चुका था । 

जब बर्मा की ऐसी निराशा पूर्ण स्थिति हो गई तब नेता जी ने आदेश दिया कि जो लोग अंग्रेजों के घेरे से बाहर नहीं आ सकते हैं वे आत्मसमर्पण कर दें लेकिन जो बाहर निकल सकते हैं वह श्याम थाईलैंड आकर उन्हें मिले ,आता अन्य सेना ने तो बर्मा में ही आत्मसमर्पण कर दिया ,लेकिन इनकी सुभाष रेजिमेंट के बच्चे कुछ सैनिकों ने संगठित होकर अपनी एक एक्स रेजिमेंट सेना तैयार कर दी ,वोट डालने वर्मा के पूर्वी पहाड़ों की ओर रुख किया ,और अनेकों कष्ट उठाते हुए पहले मूल मीन पहुंचे ,और फिर 27 मई 1945 को बैंकॉक पहुंचकर नेताजी के समक्ष उपस्थित हुए यह दल तब तक लगभग 3000 मील की पैदल यात्रा कर चुका था ,नेताजी ने उन बहादुरों का प्रसन्नता से स्वागत किया ,लेकिन दुर्भाग्यवश सूबेदार मेजर पदम सिंह गुसाईं* मार्ग में ही शहीदे भारत हो चुके थे

प्रस्तुतकर्ता डॉक्टर त्रयंबक सेमवाल