श्रीमती महादेवी
. .. श्रीमती कन्या पाठशाला की संस्था पिता श्रीमती महादेवी वर्मा के पिता राय साहब श्री सोहनलाल स्त्री शिक्षा के प्रबल समर्थक थे । उन्होंने अपनी पुत्री को कोलकाता की एक ईसाई संस्था से हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण कराई ,बाद में उन्होंने अंग्रेजी व्हाट्सएप पर अच्छा अधिकार प्राप्त कर लिया था । फिर इनका विवाह श्री ज्योति स्वरूप जी से हो गया ,श्री ज्योति स्वरूप जलालाबाद जिला मेरठ के धन संपन्न माफी दार मुंशी कुंदन लाल के सुपुत्र थे । उन्होंने कोलकाता जाकर वकाला की परीक्षा उत्तीर्ण की थी उनके भाई उन दिनों यहां देहरादून में बंद विभागीय ट्रेनिंग कर रहे थे उनके भाई उन दिनों यहां देहरादून में वन विभाग की ट्रेनिंग कर रहे थे अपने भाई के सुझाव पर ही वह देहरादून आकर वकालत करने लगे उनकी वकालत खूब चमक गई ,श्री नरदेव शास्त्री वेद तमिल जी के शब्दों में **उन्होंने अपनी विद्वता बुद्धिमता परिश्रम मधुरता आदि गुणों से अपनी स्थिति को ऊंचा किया था जिस वजह से वह देहरादून में प्रसिद्धि प्राप्त पा गए **
आप प्रथम श्रेणी के वकील थे जनता तो आपसे प्यार करती ही थी किंतु सरकार भी आपको आदर देने लगी ,देहरादून में बाहर से जो राजनीतिक या अन्य प्रसिद्ध पुरुष आते थे उनमें से ज्यादातर आपके अतिथि हुआ करते थे ।
. .. .वे अनेक वर्षों तक देहरादून तथा मसूरी आर्य समाज ओं के प्रधान रहे ,मुनि के प्रयासों से देहरादून आर्य समाज के भव्य भवन को निर्मित किया जा सका सोनी के सुझाव देने पर श्री पूर्ण सिंह नेगी नेगी ने ऐतिहासिक दान दिया था जिसके फलस्वरूप डीएवी स्कूल मेरठ से देहरादून लाया गया ,यह उनकी प्रबंध समिति के अनेक वर्षों तक प्रधान रहे ज्वालापुर हरिद्वार के गुरुकुल महाविद्यालय के प्रतिष्ठित सदस्य मुख्य अधिष्ठाता तथा प्रधान भी रहे ,मई सन 2020 में उनका निधन हुआ,ऐसे सुयोग्य और संपन्न पति को प्राप्त करके महादेवी जी को समाज सेवा करने का अवसर मिला इन्हीं के प्रयत्नों से दुर्गा पंचमी सन उन्नीस सौ दो को इन्हीं के घर पर एक छोटी सी कन्या पाठशाला का श्रीगणेश किया गया इन्होंने अपने घर की तथा पास पड़ोस उसकी 6 कन्याएं एकत्र करके उन्हें पढ़ाना शुरू किया और उसके बाद पूरे जीवन उसी कार्य पर लगी रही धीरे-धीरे पाठशाला नहीं प्रगति की सन उन्नीस सौ 4 ईसवी में लिटिल रोड पर एक मकान किराए पर लेकर वहां उसे शुरू किया फिर मिडिल तक की कक्षाएं खोल दी 1911 में व्यक्तिगत छात्राओं के लिए हाईस्कूल की कक्षाएं प्रारंभ की गई यह अपने जीवन के अंत तक अध्यापन कार्य करती रही पाठशाला के साथ-साथ इन्होंने एक छात्रावास भी खुला धीरे-धीरे उसकी प्रसिद्ध दूर-दूर तक फैल गई उन्होंने विद्यालय में सुपरिंटेंडेंट के पद पर अवैतनिक कार्य किया ।
उक्त पाठशाला के अतिरिक्त महादेवी जी समाज सुधार के अन्य क्षेत्रों में भी कार्यरत रहे उन्होंने अनेक वेश्याओं को शिक्षित करा के अच्छे घरों में उनका विवाह भी करवाया इन्हीं सब कारणों से इन्हें अखिल भारतीय महिला सम्मेलन के लखनऊ अधिवेशन का सभा नेतृत्व करने के लिए आमंत्रित किया गया ब्रिटिश सरकार ने भी समाज सेवा के लिए इन्हें केसर ए हिंद का पदक प्रदान किया था । इस प्रकार अपने कन्या पाठशाला को अपना पूरा जीवन समर्पित करते हुए 4 दिसंबर सन 1914 को इन्होंने स्वर्ग धाम की यात्रा की प्रबंध समिति ने इनकी स्मृति रक्षा के उद्देश्य से तथा इनकी मूल्यवान सेवाओं की सराहना करते हुए वह संस्था का नामकरण महादेवी कन्या पाठशाला कर दिया ।
. इस प्रकार महादेवी जी ने स्त्री शिक्षा का जो छोटा सा पौधा लगाया था अब एक विशाल वृक्ष का रूप धारण कर चुका है सन 1958 में B A की मान्यता मिली ,सन 1963 में स्नातकोत्तर कक्षाएं प्रारंभ की गई ,इस प्रकार **6 छात्राओं की उस कन्या पाठशाला ने 75 वर्षों में महाविद्यालय का विशाल आकार ले लिया ,इंटर तथा डिग्री विभाग की लगभग 5500 छात्राएं विज्ञान तथा कला संख्याओं के अंतर्गत विभिन्न विषयों का ज्ञानार्जन कर परीक्षा परिणामों में विशेष योग्यता प्राप्त कर रही हैं खेलकूद राष्ट्रीय सेवा योजना एनसीसी एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में इन्होंने विशेष उपलब्धियां हासिल की है इन्हीं कारणों से आज गढ़वाल विश्वविद्यालय से संबद्ध छात्राओं का यह शर्म प्रमुख महाविद्यालय है ** प्रस्तुति डॉक्टर त्रयंबक सेमवाल