राइफलमैन गब्बर सिंह नेगी
निधन 10 मार्च सन 1915
फ्रांस के रण क्षेत्र में वीरता पूर्वक हुतात्मा होने वाले श्री गब्बर सिंह नेगी का टिहरी गढ़वाल जिले के बम मुंड पट्टी के साजुल ग्राम में अप्रैल सन 1995 में जन्म हुआ था । इनके पिता श्री बद्री सिंह नेगी एक साधारण किसान थे । पिता का बचपन में ही देहांत हो जाने के कारण इन्हें जल्दी ही नौकरी करनी पड़ी । सन 1911 से सन 1913 तक 2 वर्ष टिहरी नरेश के प्रताप नगर स्थित महल में एक साधारण नौकर का कार्य करते रहे । इसके बाद ही यूरोपीय महायुद्ध छूने की आशा हुई ,और रंगरूटों की तेजी से भर्ती होने लगी । आता अक्टूबर सन 1913 में लैंसडौन जाकर ये गढ़वाल राइफल में भर्ती हो गए । अभी इन्हें फौज में पहुंचे कुछ महीने ही हुए थे कि यूरोपीय महा युद्ध छिड़ गया और भारतीय सेना ने भी शीघ्र ही यूरोप के मोर्चे पर भेजी गई इनकी फौज ने 21 सितंबर सन 1914 को भारत वर्ष से प्रस्थान किया ,और 13 अक्टूबर को फ्रांस के बंदरगाह मार्सेंस में पहुंचकर अपने मोर्चे पर डांट गई । शीघ्र ही इस बटालियन को युद्ध में अपने करिश्मे दिखाने का अवसर मिला ,फल स्वरुप 23 नवंबर सन 1914 की लड़ाई में अद्भुत वीरता दिखाने के लिए इनके एक साथी नायक दरबान सिंह नेगी को विक्टोरिया क्रॉस प्राप्त हुआ ,आता है उसके कारण एक नया उत्साह पैदा हो गया ।
10 मार्च सन 1915 ईस्वी के दिन न्यू सैंपल का प्रसिद्ध युद्ध हुआ ,सामरिक दृष्टि से वह लिली के बड़े नगर का प्रवेश द्वार था और जर्मनी ने वहां 4 मील लंबा एक हरे धनिए मोर्चा कायम कर रखा था ,9 मार्च की रात सब ब्रिटिश सेनापति चिंता में थे ,कि किस तरह सफलता पाई जाए अंत में यह तय हुआ कि सत्र मोर्चे को चकनाचूर करने के लिए गढ़वाली बटालियन सबसे आगे बढ़ेगी । 10 मार्च का प्रातः काल हुआ उस समय ठंड नमी और कोहरा था ,उसके सिवाय दलदली खेतों टूटी फूटी झाड़ियों और कांटेदार तारों के कारण स्थिति विकट हो गई थी ,उस पार जर्मन सेना ओवर स्कूल के पास एक अत्यंत सुरक्षित स्थान से आक्रमण कर रही थी ,सिर के ऊपर भयंकर वायुयान और भी भयंकर शब्द करके बम गिरा रहे थे ,दूसरी औरतों खाने की अदाएं अदाएं से भूमि कम पाए मान हो रही थी ,चारों ओर अंधेरा और धुआं था ,मृतकों और घायलों की संख्या बढ़ती जा रही थी फिर भी बिना घबराए निश्चित कार्यक्रम के अनुसार थी 8:05 पर गढ़वाली सेना अपने भाइयों से निकली और लगभग आधे घंटे में बिना किसी रूकावट के शत्रु पक्ष की प्रथम कार्यों पर टूट पड़ी ,अब आगे बढ़ना प्रायर असंभव था क्योंकि आमने-सामने की भिड़ंत थी । शत्रु पक्ष की लगातार गोलाबारी से कई अफसर व सैनिक वहीं पर सदा के लिए लोट गए । 20 अक्षरों का 350 सैनिकों की मृत्यु हुई ,वह साहनी के बावजूद भी गढ़वाली बटालियन उस अग्नि परीक्षा में सफल सिद्ध हुए ।
वह ऐतिहासिक मुठभेड़ में इन्होंने शुरू से अंत तक आश्चर्यजनक वीरता प्रदर्शित की ,अब इनकी संगीन धारी टुकड़ी का नायक मारा गया ,तब उन्होंने तुरंत नेतृत्व ग्रहण कर लिया ,और अपनी टुकड़ी को सफलता तक पहुंचाया । अंत तक यह सबसे आगे आगे रहे और प्रत्येक खाई में यह सब पहले प्रविष्ट हुए ,प्रत्यक्षण मृत्यु चारों ओर से अठखेलियां कर रही थी ,अंत में अवर्णनीय स्फूर्ति और साहस के साथ यह शत्रु पक्ष की एक भयंकर मशीन गन पर टूट पड़े ,उसे छीन कर इन्होंने अपनी दिशा बदल दी और ऐसी गोलीबारी की कि शत्रु टुकड़ी को आत्मसमर्पण करना पड़ा ,यह उनकी मुख्य खाई में घुस गए ,और जर्मन अफसरों को मार कर शेर सब को गिरफ्तार कर दिया ,अंत में प्रसन्नता और संतोष के साथ यह अपने डेरे की ओर लौट रहे थे ,कि वहां पहुंचने से पहले ही दुर्भाग्य ने इन्हें वीरगति प्राप्त हो गई ,यह शहीद हुए लेकिन न्यू सेपल पर मित्र सेना का अधिकार हो गया ,साथ ही उसे 3 तोपों 350 सैनिक कैदियों को बड़ी मात्रा में युद्ध सामग्री भी उपलब्ध हुई ।
वह अभूतपूर्व वीरता के लिए इन्हें विक्टोरिया क्रॉस का सर्वोच्च पदक प्रदान किया गया ,उसके बाद 15 दिसंबर सन 1925 के दिन चंबा खाल में इस वीर के लिए समारोह के साथ एक स्मारक खड़ा किया गया ,उस दिन वर्ष बड़ी भीड़ में तेरी नरेश और कुमाऊं के कमिश्नर भी उपस्थित थे ,,साथ ही लैंसडाउन के बड़े परेड ग्राउंड के किनारे ऊंचाई पर आदर्श गढ़वाली सैनिक की जो भव्य प्रतिमा खड़ी है उसे भी श्रद्धा पूर्वक बहुत से लोग इन्हीं की मूर्ति समझते हैं ।
प्रस्तुति डॉ, त्रयंबक सेमवाल