गढ़वाल की दिवंगत विभूतियां 🌎 श्री हंस महाराज जी

गढ़वाल की दिवंगत विभूतियां

श्री हंस महाराज जी 🙏

अपने दिव्य संदेश के द्वारा सारे भारत में ख्याति प्राप्त करने वाले श्री हंस महाराज ग्राम गाड- की- सेडिया पट्टी तलाई पौड़ी गढ़वाल के निवासी थे । इनके पिता का नाम श्री रंजीत सिंह रावत था ।  वह देव साल रावतों के वंश के साधारण किसान  थे । श्री हंस जी महाराज का जन्म 8 नवंबर सन उन्नीस सौ में हुआ था । प्रारंभ में इनका नाम हंस राम सिंह रावत रखा गया । इन्होंने साधारण शिक्षा प्राप्त की थी यद्यपि बाद में स्वाध्याय के द्वारा इन्होंने अपना ज्ञान विस्तृत बना लिया था । 

अन्य गरीब घरों के गढ़वाली लड़कों की तरह यह भी अपना घर छोड़ कर नौकरी की तलाश में निकल पड़े । यह चलते-चलते क्वेटा बलूचिस्तान पहुंच गए ,वहां उन दिनो प्रवासी गढ़वाली बड़ी संख्या में रहा करते थे ।
. . क्वेटा में कुछ वर्षों तक रह लेने के बाद एक बार इन्हें किसी कार्य के लिए लाहौर जाना पड़ा ,संयोगवश वहां उनकी किसी संत से भेंट हो गई । वहीं से इनके जीवन की दिशा बदल गई क्योंकि उसने इन्हें दीक्षा दी ,वह उपदेशामृत का पान करने के बाद मानव इनके ज्ञान चक्षु खुल गए ,और भगवत गीता के सभी पदों का अर्थ स्पष्ट होने लगा ,तब से सब काम छोड़ कर के यह अपना समय गुरु जी की सेवा में बिताने लगे । इन्होंने वहां से क्वेटा वापस आने का विचार बदल दिया । वह संत जी ने भी अपने शिष्य की योग्यता को पहचाना ,और कुछ दिनों के बाद उन्होंने अपने सबसे शिव तथा अनुयायियों को बुलाकर घोषणा की —–मैं हंस के हृदय में हूं और हंस मेरे हृदय में । इसलिए मेरी मृत्यु के बाद सबको हंस का आदेश मानना होगा ।
. इतनी घोषणा करने के बाद वसंत जी वह संत जी जी ब्रह्मलीन हो गए ,पर उनके शिष्यों में विद्रोह हो गया ,एक से चले अपने को गुरु घोषित कर दिया ,हंस जी ने कहा कि उन्हें सांसारिक संपत्ति आदि की आकांक्षा नहीं है ,इसलिए यह अपने गुरु का संदेश प्रसारित करने के लिए पागल की तरह वहां से चल दिए और फिर वह संपत्ति की ओर इन्होंने कभी ध्यान नहीं दिया । उसके बाद कुछ वर्षों तक ये दिव्य प्रकाश और शब्द ब्रह्म का संदेश फैलाते हुए लाहौर और सिंध में भ्रमण करते रहे । सन 1930 ईस्वी में यह पहली बार दिल्ली आए और दिल्ली क्लॉथ मिल के समीप िटके, धीरे-धीरे उस मिलकर एक कर्मचारी इन के उपदेशों को सुनने के लिए आने लगे ,और मन की संख्या बढ़ती चली गई । इन्होंने दिल्ली से बाहर उत्तर प्रदेश से भी कुछ स्थानों पर जाना शुरू कर दिया ,हापुड़ में इनके प्रेमियों की संख्या बहुत ज्यादा हो गई ,उत्तर प्रदेश के लखनऊ अलीगढ़ मुरादाबाद आदि स्थानों तथा पंजाब के कई केंद्रों में सत्संगो की श्रृंखला शुरू हो गई,साथ ही मासिक हंस आदेश का प्रकाशन करके इनके संदेशों का प्रचार प्रसार किया जाने लगा । इस तरह सन 1960 ईस्वी तक हंस जी का प्रभाव पूरे उत्तरी भारत में फैल गया ,इसके सिवाय गुजरात मुंबई महाराष्ट्र बिहार कोलकाता नेपाल और कश्मीर तक उनके अनुयाई हो गए , सन 1960 में उनके उपदेशों का संगठित प्रचार करने के उद्देश्य से दिव्या संदेश परिषद का गठन किया गया और उसके बाद पटना में बकाया उसका रजिस्ट्रेशन भी करवा दिया गया ।
[1/8, 16:18] Me: उनके द्वारा स्थापित दिव्य संदेश परिषद ने इस बीच और भी प्रगति की है ,भारत के अतिरिक्त इंग्लैंड अमेरिका आदि देशों में भी उनकी शाखाएं हैं और उनके सदस्यों की संख्या लगभग एक लाख से भी कई ज्यादा है ,परिषद का विचार है कि मुरादाबाद जिला मेरठ में गंग नहर के किनारे स्थित सत्यलोक आश्रम में सभी धर्मों के मंदिर का निर्माण कराया जाए वहां पर विद्यालय का निर्माण हो चुका है भारत के कई स्थानों पर माध्यमिक स्तर तक के उनके विद्यालय चल रहे हैं ,शिक्षा के क्षेत्र में महाराज जी का बहुत योगदान रहा ,उनके इन्हीं सब दोनों के कारण इस परिषद ने स्वर्गीय हंस जी महाराज जी को योगीराज परम संत सतगुरु देव श्री हंस महाराज पहनावा लिखना शुरु कर दिया । योगीराज परम संत सतगुरु देव श्री हंस महाराज जी अपने ने कार्यो के कारण आज भी नमन किए जाते हैं ,यही नहीं उनके द्वारा किए गए कार्यों के कारण वह हमेशा याद किए जाएंगे । इन के चार पुत्रों में से सबसे छोटे पुत्र प्रेम सिंह रावत अनेक वर्षों तक बालयोगेश्वर और फिर संत महाराज के नाम सहित विख्यात रहे । इनके दो भाइयों ने अमेरिका में ही विवाह कर ले और अब वह स्थाई रूप से निवास कर श्री हंस जी महाराज के उपदेशों का प्रचार प्रसार कर रहे हैं । उनके बड़े भाई अर्थात हंस जी के दूसरे पुत्र श्री महिपाल सिंह रावत भोले जी महाराज कहलाते हैं ,वालों ने गढ़वाल में ही विवाह किया ,लेकिन हंस जी को समर्पित संपत्ति की देखरेख करने के लिए अधिकांश समय अमेरिका के एक अन्य केंद्रों में ही रह रहे हैं ,श्री हंस महाराज जी के सबसे जेष्ठ पुत्र श्री सत्यपाल सिंह रावत कुछ समय तक बाल भगवान के नाम से विख्यात रहे ,आप सतपाल महाराज के नाम से प्रसिद्ध है
,वे अपने आदरणीय पिता जी के चरण चिन्हों पर चलकर मूलभूत मानव धर्म के प्रचार में संलग्न है ,उल्लेखनीय है कि आज उत्तराखंड सरकार में माननीय सतपाल जी महाराज कैबिनेट मंत्री भी है ।
. प्रस्तुतीकरण —- डाॅ. त्रयंबक सेमवाल