अक्षय तृतीया के अवसर पर पूज्य क्षुल्लक रत्न 105 श्री समर्पण सागर जी महाराज के मंगल सानिध्य मे श्री दिगंबर जैन मंदिर एवं शहर के अन्य मंदिरों में भी इक्षु रस (गन्ने का रस) का वितरण किया गया।

जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ के प्रथम पारणा दिवस अक्षय तृतीया के पावन पर्व की जानकारी देते हुए मीडिया संयोजक मधु जैन ने बताया कि आज अक्षय तृतीया के अवसर पर पूज्य क्षुल्लक रत्न 105 श्री समर्पण सागर जी महाराज के मंगल सानिध्य मे श्री दिगंबर जैन पंचायती मंदिर एव जैन भवन, गांधी रोड, देहरादून माजरा मंदिर, सरनी मल मंदिर, झंडे मन्दिर, त्यागी रोड,क्लेमेंटॉउन मंदिर एवं शहर के अन्य मंदिरों में भी इक्षु रस (गन्ने का रस) का वितरण किया गया।*
जो सुबह 8 बजे से 3 बजे तक चला
आयोजक एव निवेदक मे सकल दिगंबर जैन समाज, देहरादून, जैन मिलन प्रगति, प्रभु समर्पण समिति, सौरभ सागर समिति, मूक माटी,महिला जैन मिलन अजीत जैन अमित जैन का विशेष सहयोग रहा….इस अवसर पर 105 श्री समर्पण सागर जी ने कहा कि जैन धर्म के इतिहास में अक्षय तृतीया का है विशेष महत्व हैं….भारतीय संस्कृति में बैसाख शुक्ल तृतीया का बहुत बड़ा महत्व है, इसे अक्षय तृतीया भी कहा जाता है। जैन दर्शन में इसे श्रमण संस्कृति के साथ युग का प्रारंभ माना जाता है। जैन दर्शन के अनुसार भरत क्षेत्र में युग का परिवर्तन भोग भूमि व कर्मभूमि के रूप में हुआ। भोग भूमि में कृषि व कर्मों की कोई आवश्यकता नहीं। उसमें कल्प वृक्ष होते हैं, जिनसे प्राणी को मनवांछित पदार्थों की प्राप्ति हो जाती है। कर्म भूमि युग में कल्प वृक्ष भी धीरे-धीरे समाप्त हो जाते हैं और जीवको कृषि आदि पर निर्भर रह कर कार्य करने पड़ते हैं। भगवान आदिनाथ इस युग के प्रारंभ में प्रथम जैन तीर्थंकर हुए।
प्रथम आहार गन्ने का रस का दिया उन्होंने लोगों को कृषि और षट् कर्म के बारे में बताया तथा ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य की सामाजिक व्यवस्थाएं दीं। इसलिए उन्हें आदि पुरुष व युग प्रवर्तक कहा जाता है। राजा आदिनाथ को राज्य भोगते हुए जब जीवन से वैराग्य हो गया तो उन्होंने जैन धर्म की दीक्षा ली तथा 6 महीने का उपवास लेकर तपस्या की। 6 माह बाद जब उनकी तपस्या पूरी हुई तो वे आहार के लिए निकले। जैन दर्शन में श्रावकों द्वारा मुनियों को आहार का दान किया जाता है। लेकिन उस समय किसी को भी आहार की चर्या का ज्ञान नहीं था। जिसके कारण उन्हें और 6 महीने तक निराहार रहना पड़ा। बैसाख शुल्क तीज (अक्षय तृतीया) के दिन मुनि आदिनाथ जब विहार (भ्रमण) करते हुए हस्तिनापुर पहुंचे। वहां के राजा श्रेयांस व राजा सोम को रात्रि को एक स्वप्र दिखा, जिसमें उन्हें अपने पिछले भव के मुनि को आहार देने की चर्या का स्मरण हो गया। तत्पश्चात हस्तिनापुर पहुंचे मुनि आदिनाथ को उन्होंने प्रथम आहार ईक्षु रस (गन्ने का रस) का दिया। जैन दर्शन में अक्षय तृतीया का बहुत बड़ा महत्व है और जैन श्रावक इस दिन ईक्षु रस का दान करते हैं।
इस अवसर पर जैन भवन मंत्री संदीप जैन ने कहा कि जैन धर्म के सभी अनुयाई सभी धर्म क्रियाओं में कार्यक्रमों में बढ़ चढ़कर सहयोग और सहभागिता करते हैं सबके सहयोग से सभी कार्यक्रम सफल होते हैं सभी एक जुट होकर कार्यक्रम को सफल बनाते हैं
इस अवसर पर जैन समाज अध्यक्ष विनोद जैन, जैन भवन के प्रधान सुनील जैन, जैन भवन मंत्री संदीप जैन,सचिन जैन, मनोज जैन, अजीत जैन, अमित जैन, डॉक्टर संजय जैन ,अमित जैन, शिल्पी जैन, राहुल जैन, अंजू जैन, मोनिका जैन, अलका जैन, पूनम जैन आदि मौजूद रहे