अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष श्री महंत रविंद्र पुरी ने सनातन विरोधियों को मुंह तोड़ जवाब देते हुए सनातन के महत्व को बताया उन्होंने कहा आज कुछ लोग सनातन धर्म पर प्रहार कर रहे हैं, मैं उन लोगों के समक्ष सनातन धर्म के बारे में कुछ कहना चाहूंगा, सनातन जो आदिकाल से चला आ रहा है जिसको आज तक कोई मिटा नही पाया उसके कुछ मूल सिद्धांत हैं जैसे…….वसुधैव कुटुम्बकम् ।
पृथ्वी सम्पूर्ण मानव जाति का एक परिवार है।
आत्मनो मोक्षार्थम् जगत् हिताय च।
अपने मोक्ष के लिए और समाज के हित के लिए कर्म करो।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।।
जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ़ता है, उस समय मैं अपने रूप को उत्पन्न करता हूं।
सत्यमेव जयते नानृतं।
सत्य हमेशा जीतता है, झूठ हारता है।….सनातन एक प्राचीन और संपूर्णता का धर्म है। इस धर्म का मूल उद्देश्य व्यक्ति को आत्मज्ञान, सत्य, धर्म, कर्म और मोक्ष की प्राप्ति के मार्ग पर ले जाना है। यह धर्म अनेक शाखाओं, मतवादों और आचार्यों के माध्यम से व्यक्त होता है, जिनमें वेदांत, योग, वैष्णव, शैव, शाक्त, सौर, गाणपत्य, कुमारिल, जैन, बौद्ध आदि शामिल हैं ।असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं गमय।
ॐ शान्ति शान्ति शान्तिः॥
हे परमेश्वर, मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो, अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो, मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो। ओम्, शान्ति, शान्ति, शान्ति॥…सनातन धर्म की महत्ता काफी गहरी और व्यापक है। यह धर्म संसार के सभी धर्मों में एक अद्वितीय स्थान रखता है और अपार महत्त्व रखता है।…प्राचीनता और आध्यात्मिकता: सनातन धर्म भारतीय सभ्यता के साथ संबद्ध है और विश्व की सबसे प्राचीन धार्मिक परंपरा है। इसमें समय के साथ आये बदलावों के बावजूद, यह आज भी अपनी प्राचीनता और आध्यात्मिकता के लिए प्रसिद्ध है।…एकता और सामान्यता: सनातन धर्म के मूलतत्वों में एकता और सामान्यता का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह सभी जीवों में दिव्यता का आदर्श रखता है और सभी मानवों को एक परिवार के सदस्य की भावना से जोड़ता है।…मानवीयता और सद्भावना: सनातन धर्म में मानवीयता, सद्भावना और अहिंसा की महत्ता बड़ी होती है। यह धर्म सभी जीवों के प्रति सम्मान, प्यार और सहानुभूति की प्रेरणा देता है।….सनातन धर्म, जो भारत की सबसे प्राचीन धर्म है, विश्व की सबसे पुरानी धर्मों में से एक है। इस धर्म का उद्देश्य स्वयं को अधिकतम ज्ञान, भक्ति और सद्भावना के साथ व्यक्त करना है। यह एक ऐसा धर्म है जिसमें न केवल भगवान की पूजा होती है, बल्कि इसमें लोगों के आत्मा के विकास की भी पूर्ण शिक्षा दी जाती है।