अब विधानसभा के वर्ष 2016 से पहले के कर्मचारियों को झटका

महाधिवक्ता बोले-2016 से पहले के नियुक्त विधानसभा कर्मियों के नियमितीकरण की वैधता पर वे कोई भी विधिक राय नहीं दे सकते

देहरादून#BHVN

विधानसभा के 2016 से पहले के नियुक्त कर्मचारियों को बड़ा झटका लगा है। महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर ने स्पीकर ऋतु खंडूडी को दी अपनी राय में दो टूक स्थिति साफ की। कहा कि 2016 से पहले के कर्मचारियों के नियमितीकरण की वैधता पर वो कोई भी विधिक राय नहीं दे सकते। क्योंकि इन कर्मचारियों के नियमितीकरण की वैधता से जुड़ा कोई दस्तावेज उन्हें नहीं मिला है। न ही डीके कोटिया की अध्यक्षता वाली समिति में कहीं भी इन कर्मचारियों की नियमितीकरण की वैधता को सही ठहराया गया है। उल्टा कोटिया समिति ने 2000 से लेकर 2022 तक के सभी नियुक्त कर्मचारियों की नियुक्ति को अवैध बताया है। इसी मामले में हाईकोर्ट में सुनवाई जारी है। ऐसे में वे नियमितीकरण की वैधता पर किसी भी तरह की कोई विधिक राय नहीं दे सकते।
महाधिवक्ता की इस राय ने 2016 से पहले के कर्मचारियों को बड़ा झटका दिया है। ये झटका सीधे तौर पर विधानसभा सचिवालय को भी है। विपक्ष लगातार स्पीकर पर 2016 से पहले के कर्मचारियों को बचाने का आरोप लगा रहा है। नियमितीकरण का हवाला देकर अवैध रूप से नियुक्त हुए इन कर्मचारियों को लगातार बचाने का प्रयास किया जा रहा था। विपक्ष का आरोप रहा कि यही वजह है, जो विधिक राय चार महीने तक मांगी ही नहीं गई। कार्रवाई में पूरी तरह भेदभाव बरता गया। महाधिवक्ता ने अपनी राय में साफ कहा है की 2016 से पहले के कर्मचारियों के नियमितीकरण को वैध नहीं ठहराया जा सकता है। क्योंकि कोटिया समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में सभी की नियुक्ति को अवैध ठहराया है। इस मामले को लेकर कोर्ट में केस लंबित हैं। ऐसे में 2016 से पहले के कर्मचारियों को लेकर कोई विधिक राय नहीं दी जा सकती। 17 जनवरी को जब स्पीकर से पूछा गया की वो 2016 से पहले के कर्मचारियों के मामले में क्या कर रही हैं, तो बोला की विधिक राय मांगी गई है। जबकि 9 जनवरी को ही महाधिवक्ता अपनी राय दे चुके थे। अब 15 दिन से महाधिवक्ता की राय को स्पीकर दबाए बैठी हैं।
विधानसभा के 2016 से पहले के कर्मचारियों को लेकर एक बड़ा खुलासा हुआ है। विधानसभा ने इस बार इन कर्मचारियों को लेकर सरकार से किसी भी प्रकार की कोई विधिक राय नहीं मांगी है। विधिक राय को लेकर दिसंबर महीने में विधानसभा ने विधिक राय मांगने को लेकर पत्र न्याय विभाग को नहीं भेजा। बल्कि सीधे महाधिवक्ता को भेजा। जिसका सीधे सरकार से कोई लेना देना नहीं है।
इस बार विधिक राय को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा की गई। बाहर यही हल्ला मचाया गया कि 2016 से पहले वाले कर्मचारियों को लेकर सरकार से विधिक राय मांगी गई है। खुद स्पीकर ऋतु खंडूडी ने भी मीडिया में बयान दिया कि सरकार से विधिक राय मांगी गई है। सरकार इन कर्मचारियों के नियमितीकरण की वैधता को लेकर जो भी फैसला लेगी, उस पर आगे बढ़ा जाएगा। एक तरह से गेंद सरकार के पाले में डाल कर माइंड गेम में सरकार को उलझाने की कोशिश की गई।
महाधिवक्ता की ओर से स्पीकर ऋतु खंडूडी को भेजी गई राय से भ्रम की स्थिति समाप्त हो गई है। महाधिवक्ता ने सीधे स्पीकर को पत्र भेज कर किसी भी तरह की विधिक राय देने से साफ मना कर दिया है। दूसरी ओर विधानसभा भर्ती से जुड़े मामले में सरकार कई बार साफ कर चुकी है कि ये सीधे तौर पर विधानसभा का अधिकार क्षेत्र है। कर्मचारियों के प्रमोशन, डिमोशन, निलंबन, टर्मिनेशन पर वो अपने स्तर पर फैसले लेने को स्वतंत्र है। विधानसभा के मामले से सरकार का किसी भी तरह का कोई सरोकार नहीं है। महाधिवक्ता ने भी दो टूक साफ किया है कि 2016 से पहले के कर्मचारियों के नियमितीकरण को किसी ने भी वैध नहीं ठहराया है। डीके कोटिया समिति ने भी इन्हें वैध नहीं माना है। इसे विधानसभा और 2016 से पहले के कर्मचारियों के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। महाधिवक्ता की रिपोर्ट को स्पीकर के लिए भी झटका माना जा रहा है। क्योंकि इस राय से साफ हो गया है कि 2016 से पहले के कर्मचारियों के मामले में जो भी फैसला होगा, वो विधानसभा में स्पीकर के स्तर पर ही होगा।
अभी तक स्पीकर ऋतु खंडूडी पुराने कर्मचारियों के मामले में यही राय दे रही थी कि उन पर कार्रवाई से पहले विधिक राय ली जा रही है। अब जबकि विधिक राय आ चुकी है और सभी कर्मचारियों को अवैध करार दिया है, उसके बाद भी विधानसभा के स्तर से कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। यहां तक की 15 दिन से महाधिवक्ता की रिपोर्ट के रूप में आई राय को भी दबा दिया गया है। न कोई कार्रवाई की जा रही है और न ही सत्य की बात की जा रही है।
विपक्ष लगातार स्पीकर पर आरोप लगाता रहा कि 2016 से पहले के नियम विरुद्ध रखे कर्मचारियों पर कार्रवाई सिर्फ इसीलिए नहीं की जा रही है, क्योकि उसमें बड़ी संख्या में लोग पूर्व सीएम बीसी खंडूडी से जुड़े हैं। उनके करीबी हैं। ऐसे में स्पीकर अपने पिता के समय विधानसभा में रखे गए लोगों पर कार्रवाई से बच रही हैं। इन आरोपों की तस्दीक तब भी हुई, जब चार महीने तक विधिक राय ही नहीं मांगी गई। निकाले गए कर्मचारियों के बढ़ते दबाव और विधानसभा के कारण भाजपा की होती फजीहत के बाद गुपचुप विधिक राय मांगी गई, लेकिन ये जानकारी मीडिया से साझा नहीं की गई। जबकि दूसरी ओर जब कभी भी फैसला स्पीकर के पक्ष में कोर्ट से आता, तो स्पीकर कहीं से भी सत्य की जीत वाला विडियो जारी करने में पीछे नहीं रहीं।
इस बार महाधिवक्ता को पत्र भेजने और महाधिवक्ता का जवाब आने के बाद भी उसे छुपा कर रखा गया। नौ जनवरी को महाधिवक्ता की राय आने के बावजूद स्पीकर ने 18 जनवरी को मीडिया को बयान दिया कि सरकार से विधिक राय मांगी है। जबकि राय सरकार से मांगी ही नहीं गई। राय सीधे महाधिवक्ता से मांगी गई। 18 जनवरी को भी स्पीकर ने मीडिया को ये नहीं बताया कि महाधिवक्ता की राय तो नौ जनवरी को ही विधानसभा को मिल चुकी है। इस राय को भी स्पीकर के निजी सचिव अजय अग्रवाल ने रिसीव किया। इससे नीयत पर सवाल उठना लाजिमी हैं। इससे विपक्ष के अपने रिश्तेदारों, करीबियों को बचाने के आरोपों की भी पुष्टि हो गई। क्योंकि अब 2016 से पहले वाले अवैध रूप से नियुक्त हुए कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई न करने, उन्हें बचाने का कोई रास्ता स्पीकर के पास नहीं बचा है। अब महाधिवक्ता की राय आ चुकी है। जिसमें उसने साफ किया है कि सभी कर्मचारी अवैध हैं। इसे लेकर डीके कोटिया समिति की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि कोटिया समिति ने कहीं भी 2016 से पहले वाले कर्मचारियों के नियमितीकरण को वैध नहीं ठहराया है। ऐसे में पूरी तरह साफ हो गया है कि महाधिवक्ता की राय पर 15 दिन बाद भी फैसला न लेकर, कार्रवाई न कर 2016 से पहले वाले कर्मचारियों को बचाया जा रहा है। ऐसा कर हाईकोर्ट को भी गुमराह करने का प्रयास किया जा रहा है।