एचसीएल फ़ाउंडेशन (एचसीएलएफ) को उत्तराखंड में गंगा नदी के जलग्रहण क्षेत्र के कायाकल्प में योगदान देकर एक मिसाल कायम करने के लिए गंगा उत्सव में सम्मानित किया गया

देहरादून

एचसीएल टेक्नोलॉजीज की सी.एस.आर. (कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व) शाखा, एचसीएल फ़ाउंडेशन (एचसीएलएफ) को उत्तराखंड में गंगा नदी के जलग्रहण क्षेत्र के कायाकल्प में योगदान देकर एक मिसाल कायम करने के लिए गंगा उत्सव में सम्मानित किया गया है, जो उत्तराखंड में आयोजित किया जाने वाला एक नदी महोत्सव है। इस सम्मान समारोह में गजेंद्र सिंह शेखावत जल शक्ति मंत्री, भारत सरकार, तथा जी. अशोक कुमार, महानिदेशक, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एन.एम.सी.जी.) ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज की। एचसीएल फ़ाउंडेशन ने अपने प्रमुख कार्यक्रमों में से एक, ‘एचसीएल हरित’ कार्यक्रम के तहत रुद्राक्ष और संबंधित प्रजातियों के पौधे लगाकर अलखनंदा जलग्रहण क्षेत्र को नया जीवन देने के लिए एन.एम.सी.जी. तथा इनटैक के साथ साझेदारी की है। आज की तारीख तक, फ़ाउंडेशन ने 45 एकड़ से अधिक भूभाग पर 10,000 से अधिक पौधे लगाए हैं। इस परियोजना से वहाँ के पारिस्थितिकी तंत्र को होने वाले कई फायदे भी सामने आए हैं, जिनमें जीव-जंतुओं के प्राकृतिक वास का नए सिरे से निर्माण, मिट्टी के कटाव की रोकथाम, भूमिगत जल के स्तर में बढ़ोतरी, कार्बन पृथक्करण, तथा समुदाय की भागीदारी के जरिए जलवायु की स्थिति का बेहतर होना शामिल है।
एलियोकार्पस गैनिट्रस (रुद्राक्ष) के पेड़ हिमालय और हिमालय की तराई वाले इलाकों में मिश्रित आकार के चौड़े पत्तों वाले जंगलों में पाए जाते हैं, और यह ओक जैसी प्रजाति के पेड़ों से संबंधित है। इसके अलावा, रुद्राक्ष के पौधों के अंकुरण की दर बहुत कम और अनियमित होती है। इसी वजह से, हिमालय क्षेत्र में पारिस्थितिकी तंत्र को नया जीवन देने और जैव विविधता के संरक्षण के लिए रुद्राक्ष का वृक्षारोपण बेहद महत्वपूर्ण है।

कुल मिलाकर इस कार्यक्रम का उद्देश्य पवित्र प्रजाति वाले पेड़ों दृ रुद्राक्ष का संरक्षण करना है, जिसके लिए उन क्षेत्रों में वृक्षारोपण आवश्यक है जहाँ वे सहज रूप से पाए जाते हैं। इससे जुड़ी दूसरी प्रजातियों दृ खास तौर पर ओक, आदि को इस कार्यक्रम में शामिल करके वृक्षारोपण के दायरे को बढ़ाया जाएगा। रुद्राक्ष और इससे संबंधित दूसरी प्रजातियों के पेड़ लगाने से पर्वतीय क्षेत्रों के पारिस्थितिक तंत्र के साथ-साथ वहाँ की जैव-विविधता का संरक्षण सुनिश्चित होता है जो सतत विकास के लक्ष्य (एस.डी.जी. 15) को हासिल करने की दिशा में उठाया गया एक कदम है, साथ ही यह सतत विकास के लिए जरूरी लाभ प्रदान करने की उनकी क्षमता को भी बढ़ाएगा। यह परियोजना एस.डी.जी. 13 को भी आगे बढ़ाती है जो जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों से निपटने के लिये तत्काल कार्रवाई से संबंधित है, क्योंकि वृक्षारोपण से कार्बन उत्सर्जन में निश्चित तौर पर कमी आएगी।
मध्य-हिमालय का क्षेत्र गंगा नदी की घाटी के अंतर्गत आता है। अलखनंदा नदी के जलग्रहण क्षेत्र में वृक्षारोपण कार्यक्रम चलाया जा रहा है, जो देव प्रयाग में भागीरथी नदी से मिलती है और गंगा नदी बन जाती है। मध्य-हिमालय क्षेत्र में वृक्षारोपण से गंगा नदी के जलग्रहण क्षेत्र में पानी की शुद्धता बढ़ेगी। वृक्षारोपण के बाद स्थायी तरीकों से पेड़ से प्राप्त होने वाले उत्पादों के जरिए लंबे समय में स्थानीय आबादी के लिए आजीविका के अवसर भी पैदा होंगे। रुद्राक्ष के पेड़ के पत्ते, फूल और फल औषधीय रूप से बेहद महत्वपूर्ण होते हैं, जिनका उपयोग अलग-अलग तरह के आयुर्वेदिक उपचारों में किया जाता है। इसके सूखे फलों का इस्तेमाल मनके की तरह किया जाता है, जिसकी पूरी दुनिया में जबरदस्त मांग है। उत्तराखंड में पर्यावरण संरक्षण की इन गतिविधियों के अलावा, हम यमुना, हिंडन और गोमती नदी घाटियों में वृक्षारोपण और जल संरक्षण परियोजनाओं के जरिए गौतम बुद्ध नगर तथा लखनऊ जिलों में हरे-भरे क्षेत्र के विस्तार और भूमिगत जलस्तर को बढ़ाने में भी योगदान दे रहे हैं। हमने इन 2 जिलों में 100 एकड़ से अधिक जमीन पर 4.5 लाख से ज्यादा पौधे सफलतापूर्वक लगाए हैं, साथ ही 52 से अधिक जल निकायों को नया जीवन दिया है, जिसकी वजह से ्9.04 बिलियन लीटर पानी का पुनर्भरण हुआ है। एचसीएल समुदाय ने उत्तर प्रदेश में हरदोई के ग्राम पंचायतों में तालाबों के जीर्णाेद्धार एवं सौंदर्यीकरण का काम भी पूरा कर लिया है, साथ ही हम आने वाले दिनों में 12 अन्य तालाबों के जीर्णाेद्धार पर काम शुरू करेंगे।