मां संतला देवी शनिवार के दिन पत्थर की मूर्ति में हो जाती है परिवर्तित
देहरादून देहरादून स्थित मां संतला देवी मंदिर में शनिवार और रविवार के दिन श्रद्धालुओं की काफी भीड़ उमड़ती है। माना जाता है कि शनिवार के दिन संतला देवी मंदिर के एक पत्थर की मूर्ति में परिवर्तित हो जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मां संतला देवी नेपाल राजघराने की राजकन्या थीं। वह शक्ति का प्रतीक थीं, जो कि मानव रूप में अवतरित हुई थीं। उस वक्त मुगलों का राज था। मुगल शासक ने मां संतला से विवाह का प्रस्ताव भेजा। तब मां संतला संतौर नामक जगह में पहुंची और वहां किला बनाकर रहने लगी। इस बात का पता चलने पर मुगलों ने किले पर हमला कर दिया। जब संतला देवी और उनके भाई को इस बात का अहसास हुआ कि वो मुगलों से लड़ने में सक्षम नहीं हैं तो संतला देवी ने हथियार फेंककर ईश्वर से उन्हें पत्थर में तब्दील करने की प्रार्थना की। अचानक एक प्रकाश चमका और वे पत्थर की मूर्ति में बदल गईं। साथ ही किले पर आक्रमण करने आए सभी मुगल सैनिक उस चमक से अंधे हो गए। इसके बाद किले के स्थान पर मंदिर का निर्माण किया गया और तब से श्रद्धालु यहां पूजा करने आते हैं।
संतला देवी मंदिर देवी संतला और उनके भाई संतुर को समर्पित है। संतला देवी मंदिर देहरादून से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए डेढ़ किमी की पैदल चढ़ाई चढ़नी होती है। यहां संतान की प्राप्ति की इच्छा रखने वाले लोग भी पूजा करने आते हैं। नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। घंटाघर से गढ़ी कैंट होते हुए जैतूनवाला तक जाने वाली बस सेवा का लाभ उठाकर यात्री मंदिर तक पहुंच सकते हैं। जैतूनवाला से पंजाबीवाला दो किलोमीटर दूर है। पंजाबीवाला से यात्रियों को मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब डेढ़ किमी की पैदल चढ़ाई चढ़नी होती है। माना जाता है 16वीं सदी में कुछ सैनिक यहां पूजा करने आते थे। उस समय एक अंग्रेजी अफसर के यहां कोई संतान नहीं थी। अपने सैनिकों से मंदिर के बारे में जानकारी के बाद उस अंग्रेज ने विधि विधान से मंदिर में पूजा की। इसके एक साल के भीतर वह एक बेटे के पिता बने। इसके बाद से मान्यता है कि यहां अधिकांश संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले लोग पूजा करने आते हैं। संतला देवी मंदिर भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। प्रतिदिन सैकड़ो भक्त यहां माता के दर्शनों के लिए आते हैं। संतला देवी मंदिर में शनिवार का विशेष महत्व है। यह माना जाता है कि इस दिन माँ संतला देवी पत्थर में परिवर्तित हुई थी। कई लोग यह भी मानते हैं कि आज भी माँ संतला देवी की मूर्ति पत्थर में परिवर्तित होती है। इस कारण यहाँ शनिवार को भीड़ अधिक होती है। कहा जाता है कि सच्चे मन से मुराद मांगने वाले की हर मुराद मां संतला पूरी करती हैं। मां संतला का यह मंदिर भाई-बहन के अटूट और निस्वार्थ प्रेम का प्रतीक है। जय हो मां संतला