मुलायम सिंह की मृत्यु के साथ साथ उत्तराखंड के जखम हुए ताजा मुलायम की स्वभाविक मृत्यु है, जिस पर किसी प्रकार की श्रद्धांजलि देना उन शहीदों का अपमान है बीजेपी के नेताओं को भी अपना एक स्टैंडर रखने की जरुरत है

जब लोग इतिहास भूला देते हैं …….

आज बहुत से लोग समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो रहे मुलायम सिंह यादव को श्रद्धांजलि देते नज़र आ रहे हैं, परंतु उत्तराखंड के इतिहास में मुलायम सिंह यादव को एक खलनायक की तरह याद किया जाता है, और याद किया जाता रहेगा, क्योंकि मौत होने पर भी इतिहास बदला नहीं करते। जिनको शायद याद नहीं उनके लिए बता दें कि 01 सितम्बर 1994 को आज से 28 वर्ष पहले खटीमा में उत्तराखंड राज्य की शांतिप्रिय तरीके से मांग कर रहे आंदोलनकारियो पर तत्कालीन मुलायम सिंह यादव की क्रूर सरकार ने गोलियां चलवाई थी। जिसमे आंदोलन कर रहे भगवान सिह सिरौला, परमजीत सिंह, सलीम अहमद, गोपीचंद, धरमानंद भट्ट , रामपाल तत्कालीन क्रूर पुलिस की बर्बरता, अमानवीयता का शिकार बने थे और शहीद हुए थे। यह घटना यही नहीं रुकी, इसके दूसरे दिन 02 सितम्बर 1994 को खटीमा की घटना का मसूरी मे शांतिप्रिय तरीके से विरोध कर रहे आंदोलनकारियो पर भी दमनात्मक काय॔वाही करते हुऐ गोलियां चलवाई गई।मसूरी मे पुलिस के गोलीकांड का शिकार हुए हंसा धनाई, बेलमती चौहान,बलबीर नेगी, राय सिंह बंगारी ,धनपत सिंह ,मदनमोहन ममगाई शहीद हुए। इसके ठीक एक माह बाद 02 अक्टूबर 1994 में दिल्ली में प्रदर्शन करने जा रहे आंदोलनकारियों के साथ जो वीभत्स घटना खासकर पहाड़ की माता / बहनों के साथ मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर हुई वह भुलाई नहीं जा सकती। उस घटना के बाद से 02 अक्टूबर उत्तराखंड के इतिहास का काला दिन बन गया। इन सभी घटनाओं का कोई सूत्रधार था, तो वह उत्तर प्रदेश की तत्कालीन सरकार और उसके मुखिया मुलायम सिंह यादव। यह बात और है कि कुछ जयचंद उस समय भी मुलायम सिंह के सिपाही बनकर इनको राज्य में पोषित करते रहे, और राज्य बनने के बाद भी कर रहे हैं । लेकिन राज्य के पर्वतीय जनपदों में मुलायम का इतिहास आज भी अधिकांश जनमानस के दिलों – दिमाग में अंकित है। मुलायम सिंह की मृत्यु एक स्वभाविक मृत्यु है, जिस पर किसी प्रकार की श्रद्धांजलि देना उन शहीदों का अपमान है, जिन्होंने इस राज्य निर्माण के लिए बिना किसी स्वार्थ के अपने प्राणों की आहुति दे दी।

जय भारत।
जय उत्तराखंड।

बीजेपी के बड़े बड़े नेता फिर भी मुलायम की मयत पर जा रहे हैं अगर मरने के बाद आंकलन न होगा तो कब होगा. बीजेपी वोट के समय राम भक्तों का खून याद दिलाती है आज उसी हत्यारे की मयत पर जा रहे हैं क्यों. वे लोग तो नहीं आए थे कल्याण सिंह और अशोक सिंघल की मृत्यु पर. बीजेपी के नेताओं को भी अपना एक स्टेंड रखने की जरुरत है नहीं तो जनता इन पर भी विश्वास नहीं करेगी. जनता को मूढ़ मत समझो. वह क्या चाहती है यह समझो. फैसबुक और ट्विटर देख कर समझ रहे हो या नहीं यह नेता लोग समझें.
वंदेमातरम 🙏🇮🇳🙏 अनिल चन्द रमोला