Dr. Sarvepalli Radhakrishnan (5 September 1888 — 17 April 1975) was an Indian philosopher.[1] He was famous for his work on comparative religion, comparative Eastern and Western philosophy, and was also a teacher in India and at Oxford University in the United Kingdom. He was also a statesman and served as the President of India. He was a great teacher and due to his commendable inputs in India’s educational front every year on his birthday, i.e 5th september, we all celebrate Teachers day
BREAKING HIGH VOLTAGE NEWS Hearty congratulations and best wishes to all the teachers on Dandavat Pranam Teacher’s Day. Teacher is like a road which takes the students to their destination while staying in their place Teacher is like a sun in the world which fills the light of light in the lives of all the students Request everyone to always respect the teachers. There is darkness in the world without teacher
गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः गुरूर्देवो महेश्वरः ।
गुरूर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ।।
अर्थ : गुरू ही ब्रह्मा हैं, गुरू ही विष्णु हैं । गुरूदेव ही शिव हैं तथा गुरूदेव ही साक्षात् साकार स्वरूप आदिब्रह्म हैं । मैं उन्हीं गुरूदेव को नमस्कार करती हूं
ध्यानमूलं गुरोर्मूर्तिः पूजामलं गुरोः पदम् ।
मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोः कृपा ।।
अर्थ : ध्यान का आधार गुरू की मूरत है, पूजा का आधार गुरू के श्रीचरण हैं, गुरूदेव के श्रीमुख से निकले हुए वचन मंत्र के आधार हैं तथा गुरू की कृपा ही मोक्ष का द्वार है ।
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।
अर्थ : जो सारे ब्रह्माण्ड में जड़ और चेतन सबमें व्याप्त हैं, उन परम पिता के श्री चरणों को देखकर मैं उनको नमस्कार करती हूँ ।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव ।।
अर्थ : तुम ही माता हो, तुम ही पिता हो, तुम ही बन्धु हो, तुम ही सखा हो, तुम ही विद्या हो, तुम ही धन हो । हे देवताओं के देव ! सद्गुरुदेव ! तुम ही मेरा सब कुछ हो ।
ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम् ।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं
भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरूं तं नमामि ।।
अर्थ: जो ब्रह्मानन्द स्वरूप हैं, परम सुख देने वाले हैं, जो केवल ज्ञानस्वरूप हैं, (सुख-दुःख, शीत-उष्ण आदि) द्वंद्वों से रहित हैं, आकाश के समान सूक्ष्म और सर्वव्यापक हैं, तत्वमसि आदि महावाक्यों के लक्ष्यार्थ हैं, एक हैं, नित्य हैं, मलरहित हैं, अचल हैं, सर्व बुद्धियों के साक्षी हैं, सत्व, रज, और तम तीनों गुणों के रहित हैं – ऐसे श्री सद्गुरुदेव को मेरा कोटि कोटि प्रणाम 🙏🏻🙏🏻🙏🏻