आज शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल से कांग्रेस, CPI, CPM, उत्तराखंड महिला मंच और चेतना आंदोलन की और से एक सृष्टिमंडल ने मुलाकात की। उन्होंने ज्ञापन द्वारा मंत्री को बताया कि दो महीने से प्रदेश भर में और देहरादून ज़िले में अलग अलग क्षेत्रों में लोगों को बेघर किया गया है। इस कारवाई में कानूनी प्रावधानों का सीधा उल्लंघन हो रहा है। बच्चों, महिलाओं, बुज़ुर्गों के स्वास्थ्य और जान, दोनों खतरे में आ रहे है।
देहरादून के आमवाला तरला में कल बीच बरसात के समय में लोगों को उजाड़ा गया है और सत्तर से ज्यादा लोगों के लिए कोई आश्रय की व्यवस्था भी नहीं की जा रही है। लोगों का आरोप है कि उनको धमकी दी गयी और तुरंत, उस आरोप के दो दिन के अंदर, बिना कोई कानूनी प्रक्रिया कर, उन लोगों को उजाड़ा गया। अतिक्रमण हटाने के अधिनियम के धारा 4 और 5 के अनुसार किसी भी जगह से किसी को बेदखल करने से पहले उनको न्यूनतम 10 दिन का नोटिस और खाली करने के लिए 30 दिन का समय दिया जाना चाहिए। इन प्रावधानों का अमल कहीं नहीं हो रहा है।
ज्ञापन द्वारा सृष्टिमंडल ने इस सवाल को उठाया कि इन घटनाओं में ऐसे सवाल उठ रहे हैं कि क्या कार्रवाई भू माफियों के दवाव में की जा रही है? आमवाला तरला क्षेत्र में पीड़ित लोगों का कहना है कि वे उस जगह में सालों से रह रहे हैं और पहले आश्वासन दिया गया था कि उनको पट्टा मिलेगा, फिर जब उस व्यक्ति ने उनसे और पैसे मांगा उन्होंने नहीं दे पाया। 3 जुलाई को उस व्यक्ति की और से उनको धमकी दी गयी और पांच तारीख को नगर निगम के कर्मचारी पहुँच गए। उन लोगों के आरोप पर आज तक कोई जांच नहीं हुई है। ऐसे ही आरोप और जगह से भी आ रहा है।
अगर इस प्रकार की कार्रवाई करने की ज़रूरत भी थी, बिना नोटिस व समय दे कर, बरसात के बीच में लोगों को बेघर करने की क्या ज़रूरत थी?
सृष्टिमंडल ने मंत्री के सामने मांग रखी कि जिन लोगों को बेघर किया गया है, और ख़ास तौर पर आमवाला तरला में, उनको आश्रय देने के लिए व्यवस्था तुरंत की जाये। अधिकारियों को तुरंत निर्देश दिया जाये कि जब तक बरसात का मौसम है तब तक घरों को न तोडा जाये । सरकार अपने ही वादों के अनुसार नीति बनाये की किसी भी परिवार को बेघर नहीं किया जायेगा। सरकारी ज़मीन को बेचने वाले व्यक्तियों पर सख्त कारवाई की जाए। बाकी बिंदुओं के लिए ज्ञापन को देखा जाये।
मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल जी ने कहा कि सरकार इन बातों पर विचार कर उचित कदम उठाएगी।
सृष्टिमंडल में कांग्रेस पार्टी की प्रदेश प्रवक्ता गरिमा दसौनी; भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेशनल कौंसिल सदस्य समर भंडारी; CPIM के राज्य समिति के सदस्य SS सजवाण; उत्तराखंड महिला मंच के पद्मा गुप्ता; और चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल शामिल रहे।
लोगों को बेघर करने की प्रक्रिया और भू माफिया को बढ़ावा देने के कदमों पर रोक लगाने हेतु
हम आपके संज्ञान में कुछ गंभीर और चिंताजनक बातें लाना चाह रहे हैं।
अप्रैल महीने से रुद्रपुर, टिहरी, हल्द्वानी, देहरादून और अन्य क्षेत्रों के लोगों के घरों को तोड़ा गया है। देहरादून ज़िले में मसूरी, धरमपुर डांडा, सीमा द्वार, आमवाला तरला और अन्य जगहों में लोगों को बेघर किया गया है। मीडिया में आयी खबरों के अनुसार इन कारवाई में कानूनी प्रावधानों का सीधा उल्लंघन हो रहा है। इस समय परिवारों को बेघर करने से बच्चों, महिलाओं, बुज़ुर्गों के स्वास्थ्य और जान, दोनों खतरे में आ रहे हैं। बीच बरसात के समय में लोगों को उजाड़ा जा रहा है और उनके लिए कोई आश्रय की व्यवस्था भी नहीं की जा रही है।
महोदय, इन घटनाओं में ऐसे सवाल उठ रहा है कि क्या कार्रवाई भू माफियों के दभाव में की जा रही है? जैसे की आमवाला तरला बस्ती में बसे हुए लोगों का आरोप है कि वे सालों से वहां पर रह रहे हैं और उनसे लाखों पैसे लिए गए थे। उनको यह आश्वासन दिया गया था कि उनको पट्टा मिलेगा । फिर जिन्होंने पैसे लिया, 3 जुलाई को धमकी दी थी कि पूरा पैसे तुरंत दिया जाए, नहीं तो लोगों को उजाड़ा जायेगा। जिसकी वजह से दोनों पक्षों के बीच चार तारीख को विवाद हुआ, जो विवाद पुलिस चौकी में भी दर्ज है।
फिर 5 जुलाई को नगर निगम क़ानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बिना उजाड़ने के लिए पहुँच गए। जबकि Uttar Pradesh Public Premises (Eviction of Unauthorised Occupants) Act, 1972 के धारा 4 और 5 के अनुसार किसी भी जगह से किसी को बेदखल करने से पहले उनको न्यूनतम 10 दिन का नोटिस और खाली करने के लिए 30 दिन का समय दिया जाना चाहिए।
ऐसे ही आरोप धरमपुर डांडा क्षेत्र से भी मिला है। इस प्रकार की कारवाई से प्रशासन के तौर तरीका पूरी तरह से संदिग्ध दिख रहे है। लोगों को धमकी दी जाती है और तुरंत, बिना कोई कानूनी प्रक्रिया कर, उन लोगों को उजाड़ा जाता है। अगर इस प्रकार की कार्रवाई करने की ज़रूरत भी थी, बिना नोटिस व समय दे कर, बरसात के बीच में लोगों को बेघर करने की क्या ज़रूरत थी?
सरकार का वादा था कि 2022 तक सबको घर दिया जायेगा। लेकिन इस काम को पूरा करने के बजाय लोगों को अपने ही घरों से उजाड़ना, यह जन विरोधी कदम है। इस गंभीर स्थिति में हम आपसे कुछ निवेदन करना चाह रहे हैं। जिन लोगों को बेघर किया गया है, उनको आश्रय देने के लिए व्यवस्था की जाये ताकि बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं को खतरा न हो। अधिकारियों को तुरंत निर्देश किया जाये कि जब तक बरसात का मौसम है तब तक घरों को न तोडा जाये ।
अतिक्रमण हटाने के दौरान कानून के अनुसार पूरा नोटिस और समय देने के बाद ही कार्रवाई की जाये।
देहरादून समेत उत्तराखंड में सरकार की ज़मीन को बेचने वाले सारे व्यक्तियों पर तुरंत सख्त कार्रवाई की जाये।
- 2016 में राज्य की मलिन बस्तियों में रहने वाले लाखों गरीब लोगों के लिए सरकार ने स्थाई व्यवस्था बनाने के लिए अधिनियम लायी थी (Uttarakhand Reforms, Regularisation, Rehabilitation, Resettlement and Prevention of Encroachment of the Slums located in Urban Local Bodies of the State Act, 2016)। उसकी नियमावली आज तक नहीं बनी है, उनको तुरंत बनाया जाए।
सरकार अपने ही वादों के अनुसार नीति बनाये की किसी भी परिवार को बेघर नहीं किया जायेगा। अगर किसी को भी बेदखल करने की ज़रूरत है, सरकार पहले साबित करे कि बेदखली के अलावा कोई विकल्प नहीं है, और फिर कानूनी प्रक्रिया पूरा होने के बाद और उनके लिए उचित पुनर्वास की व्यवस्था पूरी बनने के बाद ही उनको हटाए जाये।