तीन जिलों के बीच टिहरी के जौनपुर क्षेत्र में मनाया जाने वाला अगलाड़ ऐतिहासिक मौण मेला।

आईए जानते हैं और आपको बताते हैं कि ऐतिहासिक अगलाड़ मौण की पंरपरा क्या है?

उत्तराखंड के तीन जिलों के बीच उत्तरकाशी, देहरादून व टिहरी जिले के जौनपुर क्षेत्र में मछली पकड़ने का यह ऐतिहासिक अगलाड़ मौण मेले की पंरपरा प्रत्येक वर्ष के 27 या 28 जून को धूमधाम से मनाया जाता है।

लेकिन इस बार यह ऐतिहासिक आगलाड़ मौण मेला एक दिन पहले यानकि 26 जून को ही कल मनाया गया है।

यह मौण मेला प्रत्येक वर्ष के 27 या 28 जून के इन दो तारीखों में से किसी एक निश्चित तारीख के दिन मनाया जाता है, तो इस बार यह ऐतिहासिक अगलाड़ मौण मेला 26 जून को ही एक दिन पहले क्यों मनाया गया है ?

क्या कारण रहा है एक दिन पहले ही इस ऐतिहासिक अगलाड़ मौण मेले को आप लोगों ने मनाने का प्लान बना लिया है ?

क्योंकि इस ऐतिहासिक मौण मेले का सभी को पता है कि तीन जिलों के जो क्षेत्रवासी हैं वह प्रत्येक वर्ष की इन दो तारीखों पर ही याद रखते की अगलाड़ मौण मेला उस तारीख को ही मनाया जाता है।

इसलिए तीन जिलों के बीच आने वाले इस मौण मेले में कई लोग कन्फ्यूज भी रहे होगें और हुए भी है।

जिनको 26 जून इस ऐतिहासिक आगलाड़ मौण मेले को इस मनाने का कोई खास पता नहीं चल पाया होगा और वह मौण मेले की पंरपरा मनाने से वंचित रहे गये है।

ऐसे में उन लोगों ने क्या महसूस किया होगा ?

तब उन्होंने कहा है कि इस बार क्षेत्र के जो बाहर रहते हैं नौकरी, व्यवसाय करने वाले बहुत से लोग गांव, घर आये थे।

तब एक दिन पहले मनाने का फैसला किया गया है।

क्योंकि कुछ लोगों की छुट्टियां कम बची थी, इसलिए एक दिन पहले मनाने का निश्चय किया है।

इस ऐतिहासिक मौण मेले को मनाने के लिए जौनपुर क्षेत्र के सभी लोग जो बाहर रहते हैं वह घर में इस ऐतिहासिक मेले मनाने के लिए अपने गांव, घर आते है।

इस मेले को वह बड़ी धूमधाम से मनाते है, क्षेत्र में मौण मेले मनाने के साथ-साथ क्षेत्र में रौनक भी दो-चार दिन पहले से ही बढ़ जाती है।

ऐसा माना जाता है कि इस अगलाड़ ऐतिहासिक मौण मेला मनाने की शुरूआत टिहरी रियासत के नरेश सुदर्शनशाह ने की थी।

तीन जिलों के बीच मनाये जाने वाला यह ऐतिहासिक आगलाड़ मौण मेला जौनपुर, रवांई व जौनसार बाबर क्षेत्र के अलावा विन्हार क्षेत्र व विकासनगर, उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से भी लोग अगलाड़ नदी मौण की मछली पकड़ने के लिए और इस मौण की परंपरा को देखने के लिए भी आते हैं।

इस ऐतिहासिक अगलाड़ मौण मेला मछली पकड़ने के लिए पानी में तिमूर का पीसा हुआ पाउडर टनों के हिसाब से डालकर मछली बेहोश होकर मौण मेले में आई हुई जनता मछली को पकड़ते है।

यह अगलाड़ मौण मेले की ऐतिहासिक पंरपरा है।

इस मौण मेले में रवांई, जौनपुर व जौनसार बाबर तथा विन्हार कई क्षेत्रों की संस्कृति का अगलाड़ ऐतिहासिक मौण मेला आपसी भाईचारे को बढ़वा देता है।

तीन जिलों के बीच टिहरी जिले के जौनपुर क्षेत्र के अगलाड़ नदी में तिमूर का पीसा हुआ पाउडर से मछली पकड़ने का यह ऐतिहासिक आगलाड़ मौण मेला तीन जिलों के कई क्षेत्रवासियों की संस्कृति को जोड़ने वाला प्रसिद्ध संगम मेला है।

ऐसा माना जाता है कि अगलाड़ मौण मेले मनाने की पंरपरा की शुरुआत टिहरी रियासत काल से माना जाता है।

152 वर्षों से यह मौण मेले की मछली मारने की पंरपरा को मनाया जा रहा है।

आज भी यह अगलाड़ ऐतिहासिक मौण की पंरपरा को अगर देखा जाय तो यह तीन जिलों के विभिन्न क्षेत्रों की संस्कृति के बीच आम जनता को एक सूत्र में बांधने का बड़ा महत्व रख रही है।

अगलाड़ नदी के इस मौण मेले में जिस स्थान से मछली मारने के लिए पंरपरा से जिस तिमूर पाउडर का इस्तेमाल नदी के पानी में स्थानीय ग्रामीणों के द्वारा छ:- सात महीने से तिमूर निकालने की तैयारियां शुरू कर देते हैं।

वही बाद में जिस तारीख के प्रत्येक साल मौण मेला होता है जहां से तिमूर मछली पाउडर नदी में डाला जाता है।

उस मौण मेला का प्रसिद्ध स्थान का नाम तिमूर कोठा नाम है।

जौनपुर क्षेत्र के जिन स्थानीय ग्रामीणों द्वारा तिमूर निकालने की बारी होती है वह सबसे पहले उस तिमूर कोठा स्थान में उस दिन तिमूर पाउडर के कट्टों को इकट्ठा करके स्थानीय ग्रामीण लोग ढो़ल-दमाऊ व रणसिंगा के थाप के साथ लोक नृत्य की अनूठी परंपराओं जंगूू, बाजू, गीत आदि प्रसिद्ध गायन से धूमधाम तिमूर कोठा स्थान पर नृत्य करते है।

नृत्य करने के बाद तिमूर नदी के पानी में डालना प्रारंभ कर देते हैं, तब मौण में गये हजारों की तादाद में गये मौणाई लोग अगलाड़ नदी में तिमरू मछली पकड़ने के लिए नदी में उतर पड़ते है।

तिमूर कोटा स्थान से लेकर यमुना नदी जहां पर अगला़ड गाड़ यमुना नदी में विलय होती है उस यमुना नदी व अगलाड़ नदी के दोनों संगम जब मिलन होता है।

वहां तक मौण मेले में गये लोग जो मौण खेलने आये होते वह उस अगलाड़ नदी व यमुना नदी के संगम के अंतिम छोर तक तिमरू से बेहोश मछली को पकड़ते है।

कोई व्यक्ति फटियाड़े से तो कोई व्यक्ति जाउवे और फटियाड़ी से तो कोई व्यक्ति हाथ से ही तिमरू मछली को पकड़ते है।

इसके बाद वहां से लोग शाम के 5-6 बजे के बाद सभी मौणाई लोग मौण मेला खेलकर अपने-अपने मुल्क व घर के लिए वापसी चलना प्रारंभ कर देते है।

खास बात तो यह है इस ऐतिहासिक अगलाड़ मौण कि मछली मारने की पंरपरा में कि हजारों की तादाद में विभिन्न क्षेत्रों से विभिन्न लोग आये हुए होते हैं।

मछली पकड़ने के लिए और देखिए कि नदी के पानी में तिमूर पाउडर डालने के बाद सभी मौणाई लोग एक सुर के साथ शांतिप्रिय होकर आपस में मछली पकड़ने में लग जाते हैं।

तीन जिलों के विभिन्न क्षेत्रों से आये हए लोगों को इस ऐतिहासिक अगलाड़ मौण मेले की पंरपरा में आपसी एकता व भाईचारे को बढ़ाने का जो यह मेला परिचय करवाता है।

वहीं यह मेला विभिन्न क्षेत्रों से आये हुए विभिन्न लोगों की संस्कृति व आपसी एकता की मजबूती को भी बनाने का काम करता है।

खुशी की बात तो यह है कि तीन जिलों के बीच मनाये जाने वाला ऐतिहासिक अगलाड़ मौण मेला में सभी क्षेत्र के मौणाईयों द्वारा हजारों की तादात में आये हुए लोगों द्वारा शांतिप्रिय से मेले को मनाया गया है।

जिसके लिए सभी क्षेत्र के आम जनमानस को शुभकामनाएं है।

मुकेश सिंह तोमर खुन्ना (बहलाड़)।