हिमालयन हॉस्पिटल में सीडीएच से पीड़ित पांच दिन के शिशु की सफल सर्जरी
– पीडियाट्रिक सर्जरी व नियोनेटोलॉजी विभाग का सफल संयुक्त प्रयास
– दुर्लभ बीमारी तीन से पांच हजार में से किसी एक जीवित शिुशु को होती है।
डोईवाला। हिमालयन हॉस्पिटल जौलीग्रांट में जन्मजात डायफ्रामैटिक हर्निया की दुलर्भ बीमारी से पीड़ित एक पांच दिन के नवजात शिशु की सफल सर्जरी की गयी। इस चुनौतीपूर्ण सफल सर्जरी के बाद नवजात शिशु अब पूर्ण रूप से स्वस्थ है और उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया है।
पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के सर्जन डॉ. यासिर अहमद लोन ने बताया कि जन्म लेने के बाद इस एक दिन के बच्चे को हिमालयन अस्पताल की इमरजंेसी में लाया गया जिसे सांस लेने मंे कठिनाई हो रही थी। बच्चे की जांच करने पर उसका सेचुरेशन लेवल भी बहुत कम था। इसके बाद बच्चे को तुरंत नियोनेटोलॉजी विभाग में चिकित्सकों ने वेंटिलेटर पर रखा और सांस लेने के लिए ट्यूब डाली गयी। नियोनेटोलॉजी विभाग में बच्चे को आवश्यक दवा दी गयी। बच्चे की स्थिति सामान्य होने पर पांचवें दिन चिकित्सकों ने सर्जरी करने का निर्णय लिया। पीडियाट्रिक सर्जन डॉ. यासिर अहमद लोन के नेतृत्व में डॉ. सुबोध, डॉ. गौरव, डॉ. अर्शिया, डॉ. शलविका, ऐनेस्थेटिक डॉ. वीना अस्थाना की टीम ने बच्चे की सफल सर्जरी को अंजाम दिया। डॉ.यासिर अहमद लोन ने बताया कि सर्जरी करके बच्चे के डायफ्राम के छेद को तो बंद कर दिया। लेकिन समस्या यह थी कि बच्चे के फेफड जो पूरी तरह से विकसित नहीं हुये थे़ उसे सर्जरी से तुरंत ठीक भी नहीं किया जा सकता था। इसके बाद डॉ. गिरीश गुप्ता के नेतृत्व में नियोनेटोलॉजी विभाग के डॉ. साइकट और डॉ. चिन्मय चैतन्य ने बच्चे को सही दवाएं और वेंटिलेटर सपोर्ट दिया। बच्चे को 34 दिन तक दिन-रात चिकित्सकों की गहन निगरानी में रखा गया। बच्चे के पूरी तरह से स्वस्थ होने के बाद उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया है। बच्चे के माता-पिता भी बहुत खुश है। कुलपति डॉ. विजय धस्माना व मुख्य चिकित्साधीक्षक डॉ. एसएल जेठानी पूरी टीम को इस बेहद चुनौतीपूर्ण सफल सर्जरी पर बधाई दी।
क्या है जन्मजात डायफ्रामैटिक हर्निया (सीडीएच)
पीडियाट्रिक सर्जन डॉ. यासिर अहमद लोन ने बताया कि यह दुर्लभ बीमारी तीन से पांच हजार में से किसी एक जीवित शिुशु को होती है। जन्मजात डायफ्रामैटिक हर्निया की बीमारी के साथ जन्म लेने वाले बच्चे के मध्यपट (डायफ्राम) में छेद होता है। इसमें बनते हुये बच्चे की आंते अंदर जाकर छाती में आ जाती है और फेफड़ों को सही तरह से विकसित नहीं होने देती। इसलिए जो बच्चा पैदा होता है, उसे पैदा होते ही सांस लेने में तकलीफ होती है। बच्चा सांस तो लेता है लेकिन ऑक्सीजन फेफड़ो से अंदर नहीं जा पाती है।
आयुष्मान योजना के तहत निशुल्क की गई सर्जरी
डॉ. यासिर अहमद लोन ने बताया कि बच्चे का उपचार आयुष्मान योजना के तहत पूरी तरह निशुल्क किया गया। खास बात यह है विदेशों में इस बीमारी के ईलाज के लिए आधुनिक तकनीक व बेहतर दवाएं उपलब्ध है। लेकिन हिमालयन अस्पताल के चिकित्सकों ने यहां उपलब्ध दवाएं और पीडियाट्रिक सर्जरी और नियोनेटोलाजी विभाग के संयुक्त प्रयास से इस नवजात को बचाने में सफलता हासिल की है। उन्होंने कहा कि इस सर्जरी को करने के बाद उनकी अपील है कि हम इस बीमारी से पीड़ित बच्चों को एक मौका जरूर दें।