श्री जय लाल वर्मा
आदर्श अध्यापक तथा गढ़वाली भाषा के समर्थक श्री जयलाल वर्मा का श्रीनगर में 27 दिसंबर सन अट्ठारह सौ बयान वे को जन्म हुआ था । पर बाद में इनके पिता चमोली में जाकर रहने लगे श्री मुकुंदी लाल बैरिस्टर इन के चचेरे भाई थे ,इन्होंने चमोली श्रीनगर अल्मोड़ा में शिक्षा प्राप्त करने के बाद श्रीनगर जेरी खाल लैंसडौन और करणप्रयाग के राजकीय विद्यालयों में अध्यापन किया ,और सन 1948 में अवकाश ग्रहण किया यह भूगोल पढ़ाया करते थे और अपने सादगी पूर्ण आदर्शवादी जीवन से सदैव अपने छात्रों को प्रभावित करते थे । यह उनके सुख दुख में भी सम्मिलित हुआ करते थे इन्हीं कारणों से यह सर्वत्र मास्टर जी के नाम से विख्यात थे सरकारी नौकरी से मुक्त हो जाने पर भी इन्होंने अध्यापन कार्य जारी रखा और चमोली में एक हाई स्कूल की स्थापना कराई ।
इन्हें गढ़वाल और कुमाऊं भाषा की बहुत चिंता रहती थी यह अपने घनघोर गढ़वाली पन के लिए प्रसिद्ध थे गढ़वाल के उत्थान के बारे में इनके कई लेख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए थे इसके अतिरिक्त उन्होंने गढ़वाली भाषा में यह पुस्तकें तैयार की ——–
1 गढ़वाली शब्दकोश
- गढ़वाली तथा माला
3 बेताल पच्चीसी
4 हम और हमारे देश
5 वीर चंद्र सिंह गढ़वाली
…. इस प्रकार गढ़वाल और गढ़वाली की साधना करते हुए 27 अप्रैल सन 1975 को इन्होंने प्रभु लोक की यात्रा की ,इन्होंने अपने अंतिम संदेश में भी गढ़वाली भाषा को न भूलने की अपील की थी ,गढ़वाली भाषा के प्रति इस प्रकार का आगाध प्रेम रखने वाले को हमारा सैल्यूट ,,,,,,
प्रस्तुति डॉक्टर त्रयंबक सेमवाल