. श्री घनश्याम डिमरी
ख्याति प्रसिद्ध वकील तथा विनम्र जनसेवक श्री घनश्याम डिमरी का जन्म करणप्रयाग के समीप डिमर ग्राम में हुआ था । उच्चतम शिक्षा प्राप्त कर लेने के बाद सन 1928 में इन्होंने चमोली में वकालत प्रारंभ की वहां इनकी वकालत चमकती चली गई और धीरे-धीरे केवल चमोली तथा गढ़वाल में ही नहीं बल्कि बाहर के जिलों में भी इनकी ख्याति फैल गई ,श्री राधा कृष्ण वैष्णव के अनुसार ,,,,,,**वकालत पैसे में जो प्रतिष्ठा और सम्मान देवरी जी को प्राप्त हुआ था वह बहुत ही अन्यत्र किसी को प्राप्त हुआ हो** यहां तक कि विवाद भ्रष्ट मामलों में पक्ष विपक्ष भी उनसे प्रभावित हो जाते थे ,आप इस भांति भी उनके विश्वास भाजन ही समझे जाते थे ,अपने इन्हीं कुछ विशेष गुणों के कारण होने बुद्धिजीवी समुदाय धर्मराज की उपाधि देने में नहीं सकता था ,उनकी सूझबूझ के कारण बुद्धिजीवी समाज उन्हें धर्मराज की उपाधि देने में नहीं हिचकता था ,"
सार्वजनिक जीवन में भी यह धर्मराज का शाही व्यवहार करते थे इसलिए इनकी लोकप्रियता बढ़ती चली गई और इन्हें कई पदों से सेवा करने का अवसर मिला ,
1,यह 19 वर्षों तक गढ़वाल जिला बोर्ड के सदस्य रहे ,
2,चमोली जिले का अलग से निर्माण हो जाने पर यह जिलाधीश की परामर्श दात्री समिति के सदस्य रहे
3,यह कुमाऊं फॉरेस्ट कमेटी और जिला नियोजन समिति आदि अनेक संस्थाओं के भी सदस्य रहे
4,इन्होंने कई विद्यालयों की प्रबंध समितियों के मैनेजर के पद पर भी कार्य किया और कई वर्षों तक यह केदारनाथ मंदिर समिति के रिसीवर के पद पर भी कार्य करते रहें ,
5,यह जिला गढ़वाल विकास संघ के अनेक वर्षों तक सदस्य रहे और बाद में उस संघ के चेयरमैन भी मनोनीत किए गए ,
6,इन्होंने सन 1957 में असेंबली का चुनाव एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़ा और अपनी लोकप्रियता के कारण शानदार ढंग पर सफल हुए यह 5 वर्षों तक एमएलए भी रहे और इन्होंने निष्ठा पूर्वक अपने कर्तव्य का पालन किया ।
इस प्रकार उन्होंने विभिन्न दिशाओं में जन सेवा की ,बद्रीनाथ मंदिर सुधार मोटर सड़क निर्माण तथा पृथक चमोली जिला संबंधी आंदोलनों में इन्होंने भाग लिया कर्मभूमि के शब्दों में **सरलता निस्वार्थ का कर्तव्य परायणता में उनका साहनी व्यक्तित्व मिलना कठिन है हमने उन्हें कभी क्रोध करते नहीं देखा कई अवसरों पर उनसे गंभीर विषयों पर वाद विवाद और परामर्श हुए,पागलों ने सदा हंसमुख सरल प्रकृति से शब्द का उचित उत्तर दिया **
.. . हैप्पी स्वच्छंद सार्वजनिक जीवन वाले समाज सेवक का 11 अप्रैल सन 1976 के दिन महाप्रयाण हुआ ,उनके सुपुत्र आज अच्छे पदों पर कार्यरत हैं ,,,,,,,प्रस्तुति डॉक्टर त्रयंबक सेमवाल