दैवज्ञ तथा अभिनव वराह मिहिर की उपाधियों से अलंकृत श्री मुकुंद राम जी पौड़ी जिले में पट्टी बिचला ढांगू के ग्राम खंड के रहने वाले थे । 9 नवंबर सन 1987 को इनका जन्म हुआ । अपने पिता श्री रघुवर दत्त से संस्कृत ज्योतिष तथा कर्मकांड की शिक्षा प्राप्त करने के बाद इन्होंने देवप्रयाग हरिद्वार तथा लाहौर में अध्ययन किया ।
श्री मुकुंद राम जी अपनी ज्योतिष संबंधित ग्रंथ रचना के लिए हमेशा स्मरण किए जाते रहेंगे । उन्होंने कुल 45 ग्रंथों की रचना की जिनकी संख्या विभिन्न खंडों में मिलाकर 153 हो जाती है । इनकी महत्वपूर्ण रचनाओं में सर्वश्रेष्ठ मुकुंद कोष है जिसके 106 खंड है इसके बाद उन्होंने देवप्रयाग में मनोयोग पूर्वक संस्कृत और ज्योतिष का अध्ययन किया । वृद्ध हो जाने पर यह अपने गांव चले गए और वहीं मुकुंद आश्रम में इन्होंने अपना शेष जीवन बिताया । इन्होंने गंगा नदी के समीप रहने की अपनी प्रतिज्ञा को अंत समय तक निभाया ।
इनके महत्वपूर्ण रचनाओं में सर्वश्रेष्ठ मुकुंद कोष है जिन जिसके 106 खंड है । तथा उसमें समस्त संस्कृत साहित्य आयुर्वेद शास्त्र एवं ज्योतिष आदि सभी विषयों का समावेश किया गया है । उस ग्रंथ की पांडुलिपि को देखकर केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के सचिव ने आश्चर्यचकित होकर कहा था ,,,,,,,,इतना बहुत कार्य एक संस्थान के द्वारा भी संभव नहीं है । इस बार उन्होंने कहा यह व्यक्ति अथवा संस्था स्वयं आपके समक्ष है …..
इनकी साधना पूर्णता निष्फल नहीं रही । केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने इन के कुछ ग्रंथों को प्रकाशित किया । और इनके लिए मासिक सहायता भी स्वीकृत की । बाद में उत्तर प्रदेश शासन ने भी इन्हें पुरस्कृत किया । भारतीय ज्योतिष अनुसंधान संस्थान ने इन्हें अभिनव वाराह्मीहिर की उपाधि से अलंकृत करके स्वयं अपने आप को सम्मानित किया ,गढ़वाली विद्युत समाज में तो यह देवाग्य के नाम से पहले ही विख्यात हो चुके थे ।
आखिर ज्योतिष जगत के यह नक्षत्र गंगा नदी के समीपवर्ती अपने मुकुंद आश्रम की कुटिया में अंत तक अपनी लेखनी से परिश्रम करते हुए 30 सितंबर सन 1979 के दिन ,सदा के लिए अस्त हो गए ,उनकी संतानों में श्री चक्रधर प्रमुख है ,वे दिल्ली प्रशासन सेवा से अवकाश लेने के बाद अब अपने श्रद्धा पिताजी के शेष ग्रंथों को प्रकाशित करने के लिए प्रयत्नशील है ।
श्री मुकुंद राम जी ने अपनी एकांत साधना के द्वारा ज्योतिष संबंधी ऐसे अनेक ग्रंथों की रचना की ,जिसके कारण इनका नाम अमर रहेगा । इन का एकमात्र लक्ष्य ज्योतिष के लुप्तप्राय ग्रंथों को प्रकाश में लाना था । लेकिन इन्होंने फलित ज्योतिष का व्यवसाय कभी नहीं चलाया ,और सारे जीवन भर दरिद्रता और अभावों में ही दुबे रहे । ग्रंथ रचना के साथ-साथ इन्होंने कई योग्य छात्रों को भी तैयार किया ,जिनमें श्री चक्रधर जोशी सर्व प्रमुख थे । प्रस्तुति डॉक्टर त्रयंबक सेमवाल